Friday 14 December 2012

India applies for third test innings

Team India loves to be bowled out
After two days in Nagpur test, BCIC has decided to apply in ICC for a third test innings for Indian batting side to avoid another humiliation. Team claims that being a developing country with 1.2 billion people, India deserves more chances to compete with fully developed nations in the field of cricket.

BCIC chief Pandeep Satil says, “Our demand is very easy to understand. Look at our population. We never get enough chance accordingly. That’s why we have decided to appeal to the ICC to give us three innings to bat in a test match.” He informed that in a high level meeting they also discussed a proposal to play with 16 players, but the board rejected it as it seems “against the principles of equality”.

Satil says considering the board’s power in the international cricket and looking at the recent Indian test results, “we are confident” that India’s demand will be met immediately. He is very hopeful that India will be able to bat in their “third” innings in Nagpur itself, because “two of the presently permitted Indian innings will be over within four days.”
India has lost all four test matches in England last year and repeated the same performance during Australia trip. Team India is still performing with the same “extraordinary” results loosing two out of three tests against England at the home soil. India looking at the similar fate in current test match being played at Nagpur cricket ground.
The proposed formula says that all the teams playing against India will be getting normal two innings of batting in a cricket test match, but Indians will be able to bat three times in the same matches. The formula has been developed by Indian Statistical Institute in consultation with CAG and Planning Commission.
A source close to ICC and BCIC denies that team India is not capable to compete with the world class teams, “Yes, we are capable, but we never got that extra space, which we need.”
The source says that it will be a moral booster for all the Indian players, once they got the third innings in test matches. Now the board is planning for future. He says, “Once we are successful in getting the third innings for test matches, we will be applying for 60 overs in One day matches for India against 50 for the other side.”
(A work of satire, factually incorrect)

Thursday 13 December 2012

जाओ, जाओ इरफान, जाओ..



सेवा में,
श्री इरफान पठान
नरेंद्र मोदी समर्थक एवं क्रिकेटर

प्रेषकः
आम आदमी, भारत
Screenshot: zeenews.com

प्यारे (?) इरफान,
उम्मीद करता हूं कि अपनी इस खास मुलाकात के बाद पहले से ज्यादा अच्छे होगे. घर में,परिवार में, नाते रिश्तेदारों में सब तुमसे पहले से कहीं ज्यादा खुश होंगे.
मुझे तो पहचानते होगे. हम कभी मिले नहीं लेकिन हमारा कुछ न कुछ नाता तो रहा है. दस साल से हम तुम्हारे दीवाने हुआ करते थे, तुम्हारी गेंदों में वसीम अकरम को ढूंढा करते थे, तुम्हारे घुंघराले बालों में इमरान खान को खोजा करते थे और कई बार बल्ले से तुम्हारे जौहर पर मरे जाते थे.
तुम्हारे खेल की ही तरह तुम्हारे एटीट्यूट पर भी जान देते थे. तुम्हारे संघर्ष के मुरीद हुआ करते थे. जब ग्रेग चैपल ने तुम्हारे साथ नौटंकी की तो हम सब तुम्हारे साथ ही तो खड़े थे.
पर देखो, तुम किसके साथ खड़े हो गए इरफान. प्यार और शांति के संदेश के जेन्टलमैन को यह क्या हुआ. छोड़ो यार, मुझे पता है कि तुमने पहले ही सोच लिया होगा कि इस सवाल पर क्या कहना है, मुझे तुमसे जवाब नहीं चाहिए.
मैं तो यह समझना चाहता हूं कि जब उस शख्स के साथ खड़े तुम मुस्कुरा रहे थे, तो 10 साल पहले की एक भी बात तुम्हें याद न आई. घर तो तुम्हारे पड़ोस में भी जले होंगे इरफान, क्या तुम्हें अपने मुहल्ले का 10-12 साल का कोई भी बच्चा जेहन में न आया, जो अपने बाप के बारे में पूछा करता था. तुम्हें सांसद जाफरी भी न याद आए क्या,बेस्ट बेकरी भी भूल गए क्या. नरोदा पाटिया तो जानते होगे, या वह भी नहीं.
अरे भाई, कमाल कर दिया. यह मत कह देना कि 10 साल पीछे की बात हो गई. अरे हमारा हाथ चलते हुए भी किसी से गलती से भी लग जाए, तो हम सॉरी बोलते हैं और दुनिया एक सॉरी के लिए 10 साल से इंतजार कर रही है. पता नहीं तुम अचानक क्यों इन्हें चाहने लगे इरफान. अब ये न कह देना कि तुम तो हमेशा से उन्हें महान और विकास की मूर्ति समझते थे. तब मैं बिलकुल पूछ पड़ूंगा कि अगर हमेशा से समझते थे, तो ठीक चुनाव के वक्त उनसे मुहब्बत कैसे जाग उठी.
अरे, तुमने शाहिद सिद्दीकी से भी नहीं सीखा. तुमने देखा नहीं कि एक इंटरव्यू ने किस तरह उन्हें ठिकाने लगा दिया और उन्हें पता भी नहीं चला. वह तो ठहरे नेता थे, तुम तो निरे खिलाड़ी हो. मेहनत करके कमाते हो. ऐसा खेल क्यों खेल दिया.
रुको, रुको. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम शॉर्ट कट खोज रहे हो. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें अपनी मेहनत और क्षमता पर भरोसा न रह गया हो, कहीं ये तो नहीं सोच रहे कि इससे तुम्हारा भला हो जाएगा, आखिर साहब गुजरात क्रिकेट के अध्यक्ष हैं. हो सकता है कि राज्य के कप्तान बना दिए जाओ, फिर यहां वहां कुछ इधर उधर करने से आगे जगह निकल जाए. क्या पता, जब रवींद्र जडेजा के लिए जगह बन सकती है, तो तुम तो आसानी से बना सकते हो.
जो भी सोचा होगा, तुम्हें मुबारक हो. अच्छा हुआ जो हिसाब साफ हो गया. अब तुम जाओ. जाओ, जाओ, जाओ. और हां, 10 साल से दिल के जिस हिस्से पर कब्जा कर रखा था, उसे खाली करने का शुक्रिया !
तुम्हारा (अब नहीं)
आम आदमी.

Wednesday 5 December 2012

राम तुम कहां हो


The bank of river Sarayu
छह दिसंबर की उस काली रात राम ने दोबारा बनवास ले लिया. बाबर तो पता नहीं कब के चले गए. मस्जिद भी चली गई और शांति चली गई. अयोध्या की वीरान बस्ती रोती भी है, तो कोई दिलासा नहीं देता.
उन्होंने मंदिर मंदिर बहुत किया था. राम का नाम लिया था. उनके नाम की रोटी खाई भी थी और सेंकी भी थी. जिस राम ने उन्हें सत्ता दिलाई, उस राम को अपना घर बार दोबारा छोड़ना पडा. न कोई कैकेयी थी और न कोई धोबी, फिर भी उनकी नगरी बदनाम हो गई.
सरयू का वह किनारा शांति और तहजीब की पाठशाला थी. अब लोग बताते हैं कि यही वह जगह है, जहां की तीन गुंबदों में नफरत का इतना बारूद था कि उनके ढह जाने से गंगा जमनी रस्में खत्म हो गईं. वह कहने को पुरानी, बेजान और कमजोर गुंबदें थीं लेकिन वे इतनी शक्तिशाली थीं कि उनके जमींदोज होते ही खून के फव्वारे छूट पड़े. यह किसे मालूम था कि मुंबई और गुजरात के रक्तरंजित श्राद्ध के लिए भी सरयू का ही इस्तेमाल होगा.
सरयू आज रोती है. उसके मौन, उदास पानी में भले ही आंसुओं के कण गुम जाते होंगे, पर रक्त की परछाइयां दिखती हैं. राम तो इन परछाइयों को देख कर चले गए, अब वह अपने आप से पूछता है कि सरस्वती की तरह वह खुद क्यों नहीं दफन हो जाता. क्यों नहीं उसका भी निशान मिट जाता.
The city Ayodhya
बीस साल बड़ा वक्त होता है. पीढ़ियां बदल जाती हैं. बच्चे जवान हो जाते हैं. और जब वे पूछते हैं कि दुनिया हमें इस नजर से क्यों देखती है, इतिहास में हम बड़े नाम से दर्ज हैं. उनके इस मासूम सवाल का जवाब न तो अयोध्या के पास है और न ही सरयू के पास.
अयोध्या भले ही राम की नगरी हो, लेकिन अवध की जननी भी है. इसने कभी मंदिर और मस्जिद में फर्क नहीं देखा. वो दूर के सौदागर थे, जो उसके नाम पर सौदा कर गए. कोई उजबेकिस्तान का घुसपैठिया, तो कोई दिल्ली का दलाल. उसके लिए दोनों ही एक जैसे हैं, दोनों ने अपने काम निकाले और आगे निकल गए.
यहां की माटी पूछती है कि राज्याभिषेक के लिए तो तुम हमारे लहू का इस्तेमाल करते हो, लेकिन हमें कीमत नहीं देते. पूंजी के पाखंड में डूबे जाते हो, नित नए नक्श बनाते हो और हमें भूले जाते हो.
राम तुम कहां हो. माना कि तुम बनवास पर गए, पर तुम्हारी नगरी तो तुम्हारी है. पिछली बार तो तुम 14 साल में लौट आए थे. अबकी तो 20 साल हो गए. राम, तुम कहां हो, राम तुम कहां हो...

Monday 3 December 2012

पक्के पेशेवर पंटर

screenshot: rickyponting.net

सचिन के बाद सबसे ज्यादा टेस्ट रन बनाने वाला क्रिकेटर. ब्रैडमैन के बाद सबसे भरोसेमंद नंबर तीन बल्लेबाज. रिकी पोंटिंग कई मामलों में नंबर दो थे, लेकिन पेशेवर खिलाड़ी के नजरिए से वह नंबर वन थे.
कैरी पैकर ने भले ही क्रिकेट को रंगीन बनाया हो, भले ही इसमें पैसे भरे हों लेकिन खेल के तौर पर क्रिकेट अगर पेशा बना, तो उसमें रिकी पोंटिंग का बड़ा हाथ रहा. कप्तान के तौर पर और नंबर तीन बल्लेबाज के तौर पर.
नंबर तीन टेस्ट क्रिकेट में ऐसी जगह होती है, जिस पर हाथ रखने से बड़े बड़े दिग्गज घबराते हैं. अगर पहला विकेट जल्दी गिर जाए, तो उसे सलामी बल्लेबाज के तौर पर खेलना पड़ता है, नई फर्राटेदार गेंद फेस करनी होती है. न गिरे, तो पुरानी और घूमती स्पिन झेलनी पड़ती है. खेल शुरू होने से पहले पैड पहन कर बैठना पड़ता है.
ऑस्ट्रेलिया में तो यह नंबर और भी मुश्किल है. इस नंबर पर खेलने वाले को सीधे डॉन ब्रैडमैन से जोड़ दिया जाता है, जो वन डाउन बल्लेबाजी करते थे. लेकिन पोंटिंग ने न सिर्फ यह जिम्मेदारी उठाई, बल्कि ब्रैडमैन के बाद सबसे सफल नंबर तीन भी बन बैठे.
सत्रह साल पहले छोटे कद के पोंटिंग को हरी बैगी कैप पहन कर यह जगह भरनी थी. रिकी ने इस नंबर के मायने ही बदल दिए. पहला विकेट गिर भी रहा हो, तो भी सीधे बल्ले से आक्रामक शॉट लगा देते. टाइमिंग इतनी पक्की कि गेंद चूकने का सवाल नहीं. पहले टेस्ट में ही शतक के पास पहुंच गए. चार रन की दूरी रह गई. फिर दो चार मैचों के बाद जगह पक्की हो गई.
उस वक्त ब्रायन लारा और सचिन तेंदुलकर भले ही क्रिकेट में नुमाया हो रहे हों लेकिन सबसे तेज रन पोंटिंग जुटा रहे थे. उनके खेल में वह करिश्मा नहीं था, जो सचिन या लारा में था लेकिन मेहनत की निशानी जरूर थी. यह वो वक्त था, जब एलेन बॉर्डर जैसे बल्लेबाज ऑस्ट्रेलिया से विदा ले चुके थे और खेल करवट ले रहा था. इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया का क्रिकेट भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका का क्रिकेट बन रहा था. लेकिन पोंटिंग की वजह से यह ऑस्ट्रेलिया का भी बना रहा.
screenshot: pontingfoundation.com.au

पोंटिंग जिस आसानी से बल्लेबाजी का बोझ उठा रहे थे, बहुत पहले ही लग गया कि एक जिम्मेदार क्रिकेटर तैयार हो रहा है. स्टीव वॉ़ के बाद 2003 में उन्हें कप्तानी सौंपने में दो बार सोचने की जरूरत नहीं पड़ी. इसके बाद तो पोंटिंग ने ऐसा जलवा दिखाया कि सीधे ग्रेट पंटर बन गए.
कप्तानी का बोझ कभी भी पोंटिंग के आड़े नहीं आया, बल्कि उन्होंने क्रिकेट को जुनून बना दिया. क्रिकेट को सिर्फ खेल नहीं, बल्कि जीतने वाला खेल बनाने वाले पोंटिंग ही थे. उन्होंने जीत की जो जिद साधी, उसी का असर सौरव गांगुली, युवराज सिंह और केविन पीटरसन जैसे खिलाड़ियों पर दिखता है. हार की तो बात छोड़िए, पंटर को ड्रॉ भी गवारा नहीं था.
लेकिन यह काम उन्होंने बड़े पेशेवर अंदाज में किया. खिलाड़ियों को बड़े मौके दिए गए, उनकी बात सुनी गई. साइमंड्स जैसे विवादित खिलाड़ी को दूसरा मौका दिया गया. शायद पंटर इस बात को समझते थे कि टीम में ज्यादा उथल पुथल करने से नहीं, बल्कि टीम में भरोसा जताने से जीत मिलती है. दूसरी टीमों में जहां हर हफ्ते कप्तान और खिलाड़ी बदले जाते, ऑस्ट्रेलिया सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही टीम में बदलाव करता.
इस दौरान बल्ले से पोंटिंग का जलवा भी निखर रहा था. लारा रिटायर हो चुके थे. उनके नाम भले ही टेस्ट क्रिकेट में 400 की पारी दर्ज हो गई हो लेकिन पोंटिंग अपनी टीम को लेकर सबसे आगे चल रहे थे. उनके दौर में ऑस्ट्रेलिया एक अजेय टीम मानी जाने लगी. टीम ने विश्व कप में जीत की हैट ट्रिक लगाई (1999, 2003, 2007) और तीनों ही बार पोंटिंग टीम में शामिल रहे. दो बार तो वह कप्तान रहे और भारत के खिलाफ वर्ल्ड कप 2003 में उनकी 140 रन की पारी कौन भूल सकता है, जिसने कप उनके हाथ में थमा दिया.
सचिन के पास भले ही क्रिकेट के सारे शॉट्स हों, पोंटिंग की कवर ड्राइव और स्ट्रेट ड्राइव भी किसी को भूले नहीं भूलेगा. टेस्ट मैचों को तीन दिन में खत्म कर देने की पोंटिंग की जिद ने उन्हें पांच दिनों वाले क्रिकेट का बादशाह बनाया. जब दुनिया टेस्ट खत्म करने की बात कर रही थी, तो सचिन, लक्ष्मण, द्रविड़ और कालिस के अलावा पोंटिंग ही थे, जिन्होंने टेस्ट के मायने बदले. आज जब उन्होंने बल्ला टांगा, उनके नाम सचिन के बाद सबसे ज्यादा टेस्ट शतक (41) और रन (13378) हैं.
लेकिन इन ऊंचाइयों के बीच पोंटिंग ने क्रिकेट का पूरा सम्मान किया. भले ही कई साल उन्होंने सचिन तेंदुलकर से ज्यादा रन बनाए हों लेकिन किसी एक मौके पर भी खुद को सचिन पर भारी बताने की कोशिश नहीं की. यह उनकी पेशेवराना सोच थी. वह बार बार खुद को सचिन से सीखने वाला खिलाड़ी बताते रहे.
पोंटिंग को एक और चीज बेहद पेशेवर बनाती है, वह है उनके फैसले. ग्राउंड के अंदर तो उनके फैसले लाजवाब होते ही, अपने बारे में लिए गए फैसले भी कम सम्मानजनक नहीं होते. उन्होंने अपना करियर खुद बुना. वक्त आता गया, तो बड़े फैसले करते गए. जब इस बात को समझ लिया कि करियर ढलान की ओर चल पड़ा है, तो बिना मतलब टकराव लेने की जगह इज्जत के साथ क्रिकेट को अलविदा कह दिया.
भला कितने खिलाड़ी इस तरह खुद को जाने के लिए तैयार करते हैं. कपिलदेव महान होंगे लेकिन वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के चक्कर में उन्होंने आखिरी कुछ टेस्ट मैच जबरदस्ती खेले. गेंदों में न तो तेजी रही, न स्विंग. लेकिन वो 4-6 विकेट लेने के नाम पर कपिल टीम पर बोझ बने रहे.
पोंटिंग ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने एलान किया कि अब उनसे रन नहीं बन रहे हैं और बेहतर है कि वह यह जगह खाली कर दें. चाहते तो अगली सीरीज के पहले मैच के बाद रिटायर होते लेकिन पोंटिंग ने कहा कि बेहतर है कि उनकी जगह जो आए, उसे पूरी सीरीज में खुद को ढालने का मौका मिले. यह सिर्फ एक पेशेवर क्रिकेटर ही सोच सकता है.
शायद यही वजहें हैं कि भावनाओं को किनारे कर क्रिकेट खेलने वाली टीम के कप्तान माइकल क्लार्क की आंखों में भी आंसू आ गए. पोंटिंग का जाना किसी बल्लेबाज का जाना नहीं है, यह क्रिकेट के सफर में एक मील के पत्थर का लगना या उखड़ जाना है.
जिद्दी और समझे जाने वाले पोंटिंग के दिल में जज्बात भी बसते थे. कैंसर मरीजों के लिए उनका फाउंडेशन है, जो उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिल कर बनाया है. कैंसर से जूझ रहे युवा ऑस्ट्रेलियाइयों के लिए यह अच्छी खासी रकम जुटा रहा है.
रिकी के 17 साल के क्रिकेट में अगर 2008 के सिडनी टेस्ट में अंपायर को अंगुली उठा कर भारतीय बल्लेबाज को आउट का इशारा करने वाली घटना को हटा दिया जाए, तो उन पर अंगुली उठाना मुश्किल है. हां, आज आखिरकार उन्होंने खुद अपने करियर पर अंगुली उठा कर खुद को आउट कर लिया.

Wednesday 28 November 2012

रिटायर हो तो सजे दुकान


screenshot: Sachin Tendulkar Facebook page
आज एक बार फिर घबराहट हो रही है. कॉमन आदमी के साथ साल में एक या दो बार ऐसा हो जाता है. सचिन तेंदुलकर के रिटायरमेंट पर बोला बाली हो रही है और कॉमन मैन घबरा रहा है कि पता नहीं क्या होने वाला है.
खेल वेल तो छोड़िए, खेल के बहाने क्या किया जा सकता है, यह सोचिए. कॉमन मैन तो सोचता है कि इसी बहाने पैसे बटोरने का जुगाड़ लग जाए. अब जिस तरह से बात चल रही है और बीबीसी जैसी संस्था जैसी हेडलाइन लगा रही है, लगता है कि सचिन बाबू गुस्सा हो जाएंगे. अगर ज्यादा गुस्सा हुए, तो खेलना छोड़ देंगे. और ज्यादा हुए तो कह देंगे कि वह ऐसी स्थिति में नहीं खेलना चाहते, जब उनके नाम पर विवाद पैदा हो रहे हों.
बस, दुकान यहीं से चमक सकती है. सुनील गावस्कर और विनोद कांबली जैसे सितारे हमारे मनी प्लांट बन सकते हैं. यहां तक कि केआरके भी मदद कर सकते हैं. इन्हीं लोगों ने सचिन के खिलाफ आवाज उठाने की शुरुआत की है. बस, इनके पुतले बनवाने हैं और लोगों को बेचने हैं. आखिर सचिन रिटायर होंगे, तो भारत में भारी प्रदर्शन होंगे और लोग रिटायरमेंट की वजहों को भी तलाशेंगे. हो गया काम. लोग गावस्कर और कांबली के पुतले फूंकेंगे. पुतलों की मांग इतनी होगी कि सप्लाई नहीं कर पाएंगे. मुंहमांगी कीमत मिलेगी. भला हो कि केआरके दुबई में रहते हैं, वर्ना पता नहीं उनका क्या हाल हो.
गावस्कर ने ही कहना शुरू किया कि सचिन बाबू अब बल्ला नहीं संभाल पा रहे हैं, कांबली जी ने ही कहा कि उनके सखा का वक्त पूरा हो गया है. और तो और एसआरके के बाद सबसे चर्चित स्टार केआरके (अरे भाई, आप कमाल राशिद खान को नहीं जानते) ने भी सचिन को सलाह दी है कि वह क्रिकेट छोड़ दें.
लेकिन कॉमन मैन को यह भी पता है कि न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी. न सचिन रिटायर होंगे न...

Tuesday 27 November 2012

मीडिया का मायाजाल

screenshot: zeenews.com
एक कॉमन मैन आज परेशान है. जी न्यूज के दो बड़े पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया है. लेकिन उनकी गिरफ्तारी से कहीं ज्यादा वह परेशान मीडिया में आ रही प्रतिक्रिया से है. उसे मीडिया दीवानी लगने लगी है. एक संपादक की गिरफ्तारी पर दूसरे संपादकों की राय गिरतरगरगरगरसोच इस बत क ऐसी बन रही है कि जो जैसा करेगा, वैसा पाएगा.
आम आदमी बार बार सोच रहा है कि क्या वह नादान है या मीडिया पगला गई है. वह सोच रहा है कि यह तो कानूनी कार्रवाई का पहला हिस्सा है. अभी तो सिर्फ गिरफ्तारी हुई है. न आरोपपत्र दाखिल हुआ है और न ही कोई दोष साबित हुआ है. फिर बढ़ चढ़ कर लोग किसी को दोषी कैसे करार दे रहे हैं. वह तो अब तक यही जानता आया है कि सिर्फ गिरफ्तारी और आरोप लगा देने भर से कोई दोषी नहीं होता. बड़े बड़े मामलों में आरोपी बेदाग निकले हैं. हालांकि यह सब सोचते हुए वह न तो सुधीर चौधरी और समीर अहलूवालिया को क्लीन चिट दे रहा है और न ही आरोप लगाने वाले नवीन जिंदल को.
वह मीडिया की रिपोर्टिंग देख कर भी अलबला गया है. हिन्दी मीडिया तो हमेशा से मीडियोकर कही जाती है,अंग्रेजी मीडिया भी रिपोर्टिंग फैसला देने के अंदाज में कर रहा है. यहां पढ़िए कि वह कैसे कह रहा है कि सुधीर चौधरी और समीर अहलूवालिया ने ऐसा किया, फिर वैसा किया.जैसे कि वह वहीं मौजूद था और जैसे उसके पास सारे सबूत हैं. (आखिरी से तीसरा पैरा)
screenshot: indiatoday.in

एक आम आदमी मीडिया की बड़ी इज्जत करता है. वह मानता है कि समाज से, दुनिया से उसके जुड़ाव का यही जरिया है. लेकिन वह पत्रकारों के उस बयान से हैरान है कि यह भारतीय मीडिया का सबसे काला दिन है और इस दिन को देखने से अच्छा तो मर जाना था. वह सोच रहा है कि ब्रिटेन में जब रुपर्ट मर्डहोक ग्रुप की बड़ी पत्रकार रेबेका ब्रुक्स एक बार नहीं, दो दो बार गिरफ्तार होती हैं, तो भी ब्रिटेन के पत्रकारिता का काला दिन नहीं आता और न ही कोई ब्रिटिश पत्रकार मरने मारने की बात करता है. कई पत्रकार कत्ल जैसे मामलों में फंस चुके हैं, फिर भी पत्रकारिता का काला दिन नहीं आया. आम आदमी समझ नहीं पा रहा है कि किसी पत्रकार के गलत काम से पत्रकारिता कैसे कलंकित हो रही है. यह तो बड़ा निजी टाइप का मामला होता है.
आम आदमी सोच रहा है कि क्या यही वजहें तो नहीं कि भारतीय मीडिया को दुनिया में 131वें नंबर पर रखा जाता. कहीं उसमें बैठे लोग ही तो इसका बेड़ा गर्क नहीं कर रहे.
वह यह भी सोच रहा है कि अगर आरोप लगाने वाला सत्ता में बैठी कांग्रेस के कद्दावर नवीन जिंदल की बजाय अगर कोई अदुआ खदुआ होता, तो भी यह मामला ऐसे ही बढ़ता.

Monday 26 November 2012

फेसबुक पर फितूरी संदेश



हम कॉमन मैन बेवकूफ हैं. माफ कीजिएगा. पहले ब्लॉग की शुरुआत ऐसी आमबयानी से नहीं करनी चाहिए लेकिन क्या करें. बेवकूफों में मैं भी शामिल हूं. फेसबुक पर इन दिनों एक मेसेज चल रहा है और उसे शेयर करने की अपील चल रही है. इसमें बर्नर कन्वेंशन के बारे में लिखा है. लिखा है किस तरह एक खास डिक्लेरेशन दे देने से फेसबुक पर आप जो भी पोस्ट करेंगे, वह आपकी प्रोपर्टी रहेगी और पता नहीं क्या क्या.
हां, पता नहीं क्या क्या. हम लोग देखा देखी इसे पोस्ट कर रहे हैं. बिना यह जाने कि क्या फेसबुक वाकई ऐसा चाहता है या कोई मजे लेने के लिए खुराफात कर रहा है. अब पता चला है कि यह खुराफात ही थी. हम लोगों के साथ ऐसा पहली बार तो नहीं हुआ. पता नहीं कितनी बार ऐसे संदेश आते रहे और हम लोग इसके पीछे पागलों की तरह भागते रहे. यह सोचे बिना कि जिसकी कंपनी है, उसकी पॉलिसी क्या है, वह क्या चाहता है. हमारे एक गुरु कहा करते थे कि उन्हें गलतियों से परहेज नहीं लेकिन हर बार नई गलती होनी चाहिए. एक हम हैं कि हर बार एक ही गलती दोहराते हैं.
जब आप पहली बार फेसबुक या किसी भी वेबसाइट पर साइन इन करते हैं, तो आप एक खास खाने में बिना सोचे टिक कर देते हैं. उस खाने में लिखा होता है कि आपने नियम और शर्तें पढ़ ली हैं और आप उसे मानते हैं. भला कौन इन नियम शर्तों को पढ़ता होगा. मैंने भी नहीं पढ़ा क्योंकि ये कोई आठ दस पन्नों का भारी भरकम बोरिंग पोथी टाइप माल होता है. तो जनाबे वाली, आप इन नियमों से बंधे हैं, न कि अपनी तरफ से कोई करारनामा जारी कर देने से. ये मामूली सी बात है, जो हम कॉमन मैन को सोच लेना चाहिए था. लेकिन जब तक सोचते और जब तक उस संदेश के जाली होने के बारे में पता चलता, हजारों, शायद लाखों लोगों ने खामख्वाह अपना वॉल रंग लिया.

A place for common man

This is a place for common man. The way he/she thinks. This is not a place for high quality intellectual vomitting, but a place for day to day issues and their solutions. And yes, this is not a place for the pessimists, who thinks the world is dark and only dark. They are unwelcome here.
Posts will be in English and Hindi.
यह एक आम इंसान की जगह है कि वह कैसे सोचता है. यह उच्च स्तर की बुद्धिजीवी उल्टियों की जगह नहीं है, बल्कि ऐसी जगह है, जहां रोजमर्रा के मुद्दों पर चर्चा की जा सके और उनके हल तलाशे जाएं. और हां, यह जगह किसी ऐसे शख्स के लिए नहीं, जो पूरी दुनिया में सिर्फ गड़बड़ियां ही देखता है. उनका यहां स्वागत नहीं है.
पोस्ट हिन्दी और अंग्रेजी में होंगे.