Thursday 13 December 2012

जाओ, जाओ इरफान, जाओ..



सेवा में,
श्री इरफान पठान
नरेंद्र मोदी समर्थक एवं क्रिकेटर

प्रेषकः
आम आदमी, भारत
Screenshot: zeenews.com

प्यारे (?) इरफान,
उम्मीद करता हूं कि अपनी इस खास मुलाकात के बाद पहले से ज्यादा अच्छे होगे. घर में,परिवार में, नाते रिश्तेदारों में सब तुमसे पहले से कहीं ज्यादा खुश होंगे.
मुझे तो पहचानते होगे. हम कभी मिले नहीं लेकिन हमारा कुछ न कुछ नाता तो रहा है. दस साल से हम तुम्हारे दीवाने हुआ करते थे, तुम्हारी गेंदों में वसीम अकरम को ढूंढा करते थे, तुम्हारे घुंघराले बालों में इमरान खान को खोजा करते थे और कई बार बल्ले से तुम्हारे जौहर पर मरे जाते थे.
तुम्हारे खेल की ही तरह तुम्हारे एटीट्यूट पर भी जान देते थे. तुम्हारे संघर्ष के मुरीद हुआ करते थे. जब ग्रेग चैपल ने तुम्हारे साथ नौटंकी की तो हम सब तुम्हारे साथ ही तो खड़े थे.
पर देखो, तुम किसके साथ खड़े हो गए इरफान. प्यार और शांति के संदेश के जेन्टलमैन को यह क्या हुआ. छोड़ो यार, मुझे पता है कि तुमने पहले ही सोच लिया होगा कि इस सवाल पर क्या कहना है, मुझे तुमसे जवाब नहीं चाहिए.
मैं तो यह समझना चाहता हूं कि जब उस शख्स के साथ खड़े तुम मुस्कुरा रहे थे, तो 10 साल पहले की एक भी बात तुम्हें याद न आई. घर तो तुम्हारे पड़ोस में भी जले होंगे इरफान, क्या तुम्हें अपने मुहल्ले का 10-12 साल का कोई भी बच्चा जेहन में न आया, जो अपने बाप के बारे में पूछा करता था. तुम्हें सांसद जाफरी भी न याद आए क्या,बेस्ट बेकरी भी भूल गए क्या. नरोदा पाटिया तो जानते होगे, या वह भी नहीं.
अरे भाई, कमाल कर दिया. यह मत कह देना कि 10 साल पीछे की बात हो गई. अरे हमारा हाथ चलते हुए भी किसी से गलती से भी लग जाए, तो हम सॉरी बोलते हैं और दुनिया एक सॉरी के लिए 10 साल से इंतजार कर रही है. पता नहीं तुम अचानक क्यों इन्हें चाहने लगे इरफान. अब ये न कह देना कि तुम तो हमेशा से उन्हें महान और विकास की मूर्ति समझते थे. तब मैं बिलकुल पूछ पड़ूंगा कि अगर हमेशा से समझते थे, तो ठीक चुनाव के वक्त उनसे मुहब्बत कैसे जाग उठी.
अरे, तुमने शाहिद सिद्दीकी से भी नहीं सीखा. तुमने देखा नहीं कि एक इंटरव्यू ने किस तरह उन्हें ठिकाने लगा दिया और उन्हें पता भी नहीं चला. वह तो ठहरे नेता थे, तुम तो निरे खिलाड़ी हो. मेहनत करके कमाते हो. ऐसा खेल क्यों खेल दिया.
रुको, रुको. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम शॉर्ट कट खोज रहे हो. कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें अपनी मेहनत और क्षमता पर भरोसा न रह गया हो, कहीं ये तो नहीं सोच रहे कि इससे तुम्हारा भला हो जाएगा, आखिर साहब गुजरात क्रिकेट के अध्यक्ष हैं. हो सकता है कि राज्य के कप्तान बना दिए जाओ, फिर यहां वहां कुछ इधर उधर करने से आगे जगह निकल जाए. क्या पता, जब रवींद्र जडेजा के लिए जगह बन सकती है, तो तुम तो आसानी से बना सकते हो.
जो भी सोचा होगा, तुम्हें मुबारक हो. अच्छा हुआ जो हिसाब साफ हो गया. अब तुम जाओ. जाओ, जाओ, जाओ. और हां, 10 साल से दिल के जिस हिस्से पर कब्जा कर रखा था, उसे खाली करने का शुक्रिया !
तुम्हारा (अब नहीं)
आम आदमी.

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