screenshot: zeenews.com
एक कॉमन मैन आज परेशान है. जी न्यूज के दो बड़े
पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया गया है. लेकिन उनकी गिरफ्तारी से कहीं ज्यादा वह
परेशान मीडिया में आ रही प्रतिक्रिया से है. उसे मीडिया दीवानी लगने लगी है. एक
संपादक की गिरफ्तारी पर दूसरे संपादकों की राय ऐसी बन रही है कि जो जैसा करेगा, वैसा पाएगा.
आम आदमी बार बार सोच रहा है कि क्या वह नादान है या
मीडिया पगला गई है. वह सोच रहा है कि यह तो कानूनी कार्रवाई का पहला हिस्सा है.
अभी तो सिर्फ गिरफ्तारी हुई है. न आरोपपत्र दाखिल हुआ है और न ही कोई दोष साबित
हुआ है. फिर बढ़ चढ़ कर लोग किसी को दोषी कैसे करार दे रहे हैं. वह तो अब तक यही जानता
आया है कि सिर्फ गिरफ्तारी और आरोप लगा देने भर से कोई दोषी नहीं होता. बड़े बड़े
मामलों में आरोपी बेदाग निकले हैं. हालांकि यह सब सोचते हुए वह न तो सुधीर चौधरी
और समीर अहलूवालिया को क्लीन चिट दे रहा है और न ही आरोप लगाने वाले नवीन जिंदल को.
वह मीडिया की रिपोर्टिंग देख कर भी अलबला गया है.
हिन्दी मीडिया तो हमेशा से मीडियोकर कही जाती है,अंग्रेजी
मीडिया भी रिपोर्टिंग फैसला देने के अंदाज में कर रहा है. यहां पढ़िए कि वह कैसे कह रहा है कि सुधीर चौधरी और समीर
अहलूवालिया ने ऐसा किया, फिर वैसा किया.जैसे कि वह
वहीं मौजूद था और जैसे उसके पास सारे सबूत हैं. (आखिरी से तीसरा पैरा)
screenshot: indiatoday.in
एक आम आदमी मीडिया की बड़ी इज्जत करता है. वह मानता है कि समाज से, दुनिया से उसके जुड़ाव का यही जरिया है. लेकिन वह पत्रकारों के उस बयान से हैरान है कि यह भारतीय मीडिया का सबसे काला दिन है और इस दिन को देखने से अच्छा तो मर जाना था. वह सोच रहा है कि ब्रिटेन में जब रुपर्ट मर्डहोक ग्रुप की बड़ी पत्रकार रेबेका ब्रुक्स एक बार नहीं, दो दो बार गिरफ्तार होती हैं, तो भी ब्रिटेन के पत्रकारिता का काला दिन नहीं आता और न ही कोई ब्रिटिश पत्रकार मरने मारने की बात करता है. कई पत्रकार कत्ल जैसे मामलों में फंस चुके हैं, फिर भी पत्रकारिता का काला दिन नहीं आया. आम आदमी समझ नहीं पा रहा है कि किसी पत्रकार के गलत काम से पत्रकारिता कैसे कलंकित हो रही है. यह तो बड़ा निजी टाइप का मामला होता है.
No comments:
Post a Comment