Wednesday 5 December 2012

राम तुम कहां हो


The bank of river Sarayu
छह दिसंबर की उस काली रात राम ने दोबारा बनवास ले लिया. बाबर तो पता नहीं कब के चले गए. मस्जिद भी चली गई और शांति चली गई. अयोध्या की वीरान बस्ती रोती भी है, तो कोई दिलासा नहीं देता.
उन्होंने मंदिर मंदिर बहुत किया था. राम का नाम लिया था. उनके नाम की रोटी खाई भी थी और सेंकी भी थी. जिस राम ने उन्हें सत्ता दिलाई, उस राम को अपना घर बार दोबारा छोड़ना पडा. न कोई कैकेयी थी और न कोई धोबी, फिर भी उनकी नगरी बदनाम हो गई.
सरयू का वह किनारा शांति और तहजीब की पाठशाला थी. अब लोग बताते हैं कि यही वह जगह है, जहां की तीन गुंबदों में नफरत का इतना बारूद था कि उनके ढह जाने से गंगा जमनी रस्में खत्म हो गईं. वह कहने को पुरानी, बेजान और कमजोर गुंबदें थीं लेकिन वे इतनी शक्तिशाली थीं कि उनके जमींदोज होते ही खून के फव्वारे छूट पड़े. यह किसे मालूम था कि मुंबई और गुजरात के रक्तरंजित श्राद्ध के लिए भी सरयू का ही इस्तेमाल होगा.
सरयू आज रोती है. उसके मौन, उदास पानी में भले ही आंसुओं के कण गुम जाते होंगे, पर रक्त की परछाइयां दिखती हैं. राम तो इन परछाइयों को देख कर चले गए, अब वह अपने आप से पूछता है कि सरस्वती की तरह वह खुद क्यों नहीं दफन हो जाता. क्यों नहीं उसका भी निशान मिट जाता.
The city Ayodhya
बीस साल बड़ा वक्त होता है. पीढ़ियां बदल जाती हैं. बच्चे जवान हो जाते हैं. और जब वे पूछते हैं कि दुनिया हमें इस नजर से क्यों देखती है, इतिहास में हम बड़े नाम से दर्ज हैं. उनके इस मासूम सवाल का जवाब न तो अयोध्या के पास है और न ही सरयू के पास.
अयोध्या भले ही राम की नगरी हो, लेकिन अवध की जननी भी है. इसने कभी मंदिर और मस्जिद में फर्क नहीं देखा. वो दूर के सौदागर थे, जो उसके नाम पर सौदा कर गए. कोई उजबेकिस्तान का घुसपैठिया, तो कोई दिल्ली का दलाल. उसके लिए दोनों ही एक जैसे हैं, दोनों ने अपने काम निकाले और आगे निकल गए.
यहां की माटी पूछती है कि राज्याभिषेक के लिए तो तुम हमारे लहू का इस्तेमाल करते हो, लेकिन हमें कीमत नहीं देते. पूंजी के पाखंड में डूबे जाते हो, नित नए नक्श बनाते हो और हमें भूले जाते हो.
राम तुम कहां हो. माना कि तुम बनवास पर गए, पर तुम्हारी नगरी तो तुम्हारी है. पिछली बार तो तुम 14 साल में लौट आए थे. अबकी तो 20 साल हो गए. राम, तुम कहां हो, राम तुम कहां हो...

1 comment: