Monday 3 December 2012

पक्के पेशेवर पंटर

screenshot: rickyponting.net

सचिन के बाद सबसे ज्यादा टेस्ट रन बनाने वाला क्रिकेटर. ब्रैडमैन के बाद सबसे भरोसेमंद नंबर तीन बल्लेबाज. रिकी पोंटिंग कई मामलों में नंबर दो थे, लेकिन पेशेवर खिलाड़ी के नजरिए से वह नंबर वन थे.
कैरी पैकर ने भले ही क्रिकेट को रंगीन बनाया हो, भले ही इसमें पैसे भरे हों लेकिन खेल के तौर पर क्रिकेट अगर पेशा बना, तो उसमें रिकी पोंटिंग का बड़ा हाथ रहा. कप्तान के तौर पर और नंबर तीन बल्लेबाज के तौर पर.
नंबर तीन टेस्ट क्रिकेट में ऐसी जगह होती है, जिस पर हाथ रखने से बड़े बड़े दिग्गज घबराते हैं. अगर पहला विकेट जल्दी गिर जाए, तो उसे सलामी बल्लेबाज के तौर पर खेलना पड़ता है, नई फर्राटेदार गेंद फेस करनी होती है. न गिरे, तो पुरानी और घूमती स्पिन झेलनी पड़ती है. खेल शुरू होने से पहले पैड पहन कर बैठना पड़ता है.
ऑस्ट्रेलिया में तो यह नंबर और भी मुश्किल है. इस नंबर पर खेलने वाले को सीधे डॉन ब्रैडमैन से जोड़ दिया जाता है, जो वन डाउन बल्लेबाजी करते थे. लेकिन पोंटिंग ने न सिर्फ यह जिम्मेदारी उठाई, बल्कि ब्रैडमैन के बाद सबसे सफल नंबर तीन भी बन बैठे.
सत्रह साल पहले छोटे कद के पोंटिंग को हरी बैगी कैप पहन कर यह जगह भरनी थी. रिकी ने इस नंबर के मायने ही बदल दिए. पहला विकेट गिर भी रहा हो, तो भी सीधे बल्ले से आक्रामक शॉट लगा देते. टाइमिंग इतनी पक्की कि गेंद चूकने का सवाल नहीं. पहले टेस्ट में ही शतक के पास पहुंच गए. चार रन की दूरी रह गई. फिर दो चार मैचों के बाद जगह पक्की हो गई.
उस वक्त ब्रायन लारा और सचिन तेंदुलकर भले ही क्रिकेट में नुमाया हो रहे हों लेकिन सबसे तेज रन पोंटिंग जुटा रहे थे. उनके खेल में वह करिश्मा नहीं था, जो सचिन या लारा में था लेकिन मेहनत की निशानी जरूर थी. यह वो वक्त था, जब एलेन बॉर्डर जैसे बल्लेबाज ऑस्ट्रेलिया से विदा ले चुके थे और खेल करवट ले रहा था. इंग्लैंड-ऑस्ट्रेलिया का क्रिकेट भारत, पाकिस्तान और श्रीलंका का क्रिकेट बन रहा था. लेकिन पोंटिंग की वजह से यह ऑस्ट्रेलिया का भी बना रहा.
screenshot: pontingfoundation.com.au

पोंटिंग जिस आसानी से बल्लेबाजी का बोझ उठा रहे थे, बहुत पहले ही लग गया कि एक जिम्मेदार क्रिकेटर तैयार हो रहा है. स्टीव वॉ़ के बाद 2003 में उन्हें कप्तानी सौंपने में दो बार सोचने की जरूरत नहीं पड़ी. इसके बाद तो पोंटिंग ने ऐसा जलवा दिखाया कि सीधे ग्रेट पंटर बन गए.
कप्तानी का बोझ कभी भी पोंटिंग के आड़े नहीं आया, बल्कि उन्होंने क्रिकेट को जुनून बना दिया. क्रिकेट को सिर्फ खेल नहीं, बल्कि जीतने वाला खेल बनाने वाले पोंटिंग ही थे. उन्होंने जीत की जो जिद साधी, उसी का असर सौरव गांगुली, युवराज सिंह और केविन पीटरसन जैसे खिलाड़ियों पर दिखता है. हार की तो बात छोड़िए, पंटर को ड्रॉ भी गवारा नहीं था.
लेकिन यह काम उन्होंने बड़े पेशेवर अंदाज में किया. खिलाड़ियों को बड़े मौके दिए गए, उनकी बात सुनी गई. साइमंड्स जैसे विवादित खिलाड़ी को दूसरा मौका दिया गया. शायद पंटर इस बात को समझते थे कि टीम में ज्यादा उथल पुथल करने से नहीं, बल्कि टीम में भरोसा जताने से जीत मिलती है. दूसरी टीमों में जहां हर हफ्ते कप्तान और खिलाड़ी बदले जाते, ऑस्ट्रेलिया सिर्फ जरूरत पड़ने पर ही टीम में बदलाव करता.
इस दौरान बल्ले से पोंटिंग का जलवा भी निखर रहा था. लारा रिटायर हो चुके थे. उनके नाम भले ही टेस्ट क्रिकेट में 400 की पारी दर्ज हो गई हो लेकिन पोंटिंग अपनी टीम को लेकर सबसे आगे चल रहे थे. उनके दौर में ऑस्ट्रेलिया एक अजेय टीम मानी जाने लगी. टीम ने विश्व कप में जीत की हैट ट्रिक लगाई (1999, 2003, 2007) और तीनों ही बार पोंटिंग टीम में शामिल रहे. दो बार तो वह कप्तान रहे और भारत के खिलाफ वर्ल्ड कप 2003 में उनकी 140 रन की पारी कौन भूल सकता है, जिसने कप उनके हाथ में थमा दिया.
सचिन के पास भले ही क्रिकेट के सारे शॉट्स हों, पोंटिंग की कवर ड्राइव और स्ट्रेट ड्राइव भी किसी को भूले नहीं भूलेगा. टेस्ट मैचों को तीन दिन में खत्म कर देने की पोंटिंग की जिद ने उन्हें पांच दिनों वाले क्रिकेट का बादशाह बनाया. जब दुनिया टेस्ट खत्म करने की बात कर रही थी, तो सचिन, लक्ष्मण, द्रविड़ और कालिस के अलावा पोंटिंग ही थे, जिन्होंने टेस्ट के मायने बदले. आज जब उन्होंने बल्ला टांगा, उनके नाम सचिन के बाद सबसे ज्यादा टेस्ट शतक (41) और रन (13378) हैं.
लेकिन इन ऊंचाइयों के बीच पोंटिंग ने क्रिकेट का पूरा सम्मान किया. भले ही कई साल उन्होंने सचिन तेंदुलकर से ज्यादा रन बनाए हों लेकिन किसी एक मौके पर भी खुद को सचिन पर भारी बताने की कोशिश नहीं की. यह उनकी पेशेवराना सोच थी. वह बार बार खुद को सचिन से सीखने वाला खिलाड़ी बताते रहे.
पोंटिंग को एक और चीज बेहद पेशेवर बनाती है, वह है उनके फैसले. ग्राउंड के अंदर तो उनके फैसले लाजवाब होते ही, अपने बारे में लिए गए फैसले भी कम सम्मानजनक नहीं होते. उन्होंने अपना करियर खुद बुना. वक्त आता गया, तो बड़े फैसले करते गए. जब इस बात को समझ लिया कि करियर ढलान की ओर चल पड़ा है, तो बिना मतलब टकराव लेने की जगह इज्जत के साथ क्रिकेट को अलविदा कह दिया.
भला कितने खिलाड़ी इस तरह खुद को जाने के लिए तैयार करते हैं. कपिलदेव महान होंगे लेकिन वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाने के चक्कर में उन्होंने आखिरी कुछ टेस्ट मैच जबरदस्ती खेले. गेंदों में न तो तेजी रही, न स्विंग. लेकिन वो 4-6 विकेट लेने के नाम पर कपिल टीम पर बोझ बने रहे.
पोंटिंग ने ऐसा नहीं किया. उन्होंने एलान किया कि अब उनसे रन नहीं बन रहे हैं और बेहतर है कि वह यह जगह खाली कर दें. चाहते तो अगली सीरीज के पहले मैच के बाद रिटायर होते लेकिन पोंटिंग ने कहा कि बेहतर है कि उनकी जगह जो आए, उसे पूरी सीरीज में खुद को ढालने का मौका मिले. यह सिर्फ एक पेशेवर क्रिकेटर ही सोच सकता है.
शायद यही वजहें हैं कि भावनाओं को किनारे कर क्रिकेट खेलने वाली टीम के कप्तान माइकल क्लार्क की आंखों में भी आंसू आ गए. पोंटिंग का जाना किसी बल्लेबाज का जाना नहीं है, यह क्रिकेट के सफर में एक मील के पत्थर का लगना या उखड़ जाना है.
जिद्दी और समझे जाने वाले पोंटिंग के दिल में जज्बात भी बसते थे. कैंसर मरीजों के लिए उनका फाउंडेशन है, जो उन्होंने अपनी पत्नी के साथ मिल कर बनाया है. कैंसर से जूझ रहे युवा ऑस्ट्रेलियाइयों के लिए यह अच्छी खासी रकम जुटा रहा है.
रिकी के 17 साल के क्रिकेट में अगर 2008 के सिडनी टेस्ट में अंपायर को अंगुली उठा कर भारतीय बल्लेबाज को आउट का इशारा करने वाली घटना को हटा दिया जाए, तो उन पर अंगुली उठाना मुश्किल है. हां, आज आखिरकार उन्होंने खुद अपने करियर पर अंगुली उठा कर खुद को आउट कर लिया.

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