Monday 26 January 2015

कॉमन मैन का चला जाना

Cartoon: RK Laxman

जब कोई रचना, रचनाकार से बड़ी हो जाती है, तो रचनाकार महान हो जाता है। ऊपर के कार्टून को देख कर इस बात को समझा जा सकता है। बाईं ओर जो आम आदमी है, उसे हर कोई जानता है। भला इससे बेहतर आम आदमी की परिभाषा क्या हो सकती है। इस आम आदमी को उकेरने वाले आरके लक्ष्मण ने खुद अपना कार्टून भी बनाया, जो ऊपर दाईं ओर दिख रहे हैं। लेकिन उन्हें जानने वाले लोग उतने नहीं, जितने उनके आम आदमी को जानते हैं।
आम आदमी के रचीयता के जाने पर आम आदमी के ब्लॉग पर कुछ लिखना जरा मुश्किल है। लेकिन लिखे बिना भी भला यह आम आदमी का ब्लॉग कैसे पूरा हो सकता है।
अखबार पर उकेरे गए कुछ निशान। एक बेहद सामान्य सा आदमी। सिर पर आधे उड़े बाल, शरीर पर चेक वाली नेहरू जैकेट, आंधों पर गांधी चश्मा और नाक के नीचे कुछ कुछ राजेंद्र प्रसाद जैसी मूछें। भारत के लिए तीन चौथाई सदी तक आम आदमी की परिभाषा ऐसी ही हुआ करती थी। आरके लक्ष्मण ने इस कॉमन मैन को अमर बना दिया है। आजादी के ठीक बाद जब लक्ष्मण ने कलम साधी, तो राजनीतिक विषयों से हट कर आम लोगों की जिंदगी को अपना विषय बना डाला। उनका कार्टून इस कदर हिट हुआ कि आम आदमी की परिभाषा ही बदल गई। यह आम आदमी किसी भी आम आदमी की तरह आशा, उम्मीद, डर और चुनौती का प्रतीक बन गया।
लक्ष्मण भी उन्हीें गिने चुने टैलेंट में हैं, जिनकी पहचान उनके टीचरों को नहीं हुई थी। जब उन्होंने मुंबई में जेजे स्कूल ऑफ आर्ट में ड्राइंग और पेंटिंग की पढ़ाई करनी चाही, तो यूनिवर्सिटी के डीन का कहना था कि उन्हें लक्ष्मण के अंदर अच्छा आर्टिस्ट नहीं दिख रहा है। उन्हें मैसूर से आर्ट की पढ़ाई करनी पड़ी और इस दौरान अपने बड़े भाई केआर नारायणन की लिखी किताबों के लिए रेखाचित्र बनाते रहे.
लक्ष्मण किस कदर लोकप्रिय हुए, अंदाजा इस बात से भी लग सकता है कि उनके सम्मान में पुणे में आठ फुट ऊंचा आम आदमी की मूर्ति लगाई गई है.

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