मैं लंदन का शाही बच्चा हूं. मैं बंद दरवाजों से बाहर आना चाहता हूं. लेकिन चमकते
कैमरों, खोजी पत्रकारों और पपराजियों ने ताला लगा रखा है. अस्पताल की खिड़की से मैं
बार बार देखता हूं कि वे हैं, या गए. मैं खुद अपना नाम नहीं जानता, लेकिन पता चला
है कि मेरे नाम पर करोड़ों का सट्टा लग चुका है.
लाखों नजरें मेरी ओर हैं लेकिन खुद मेरी नजर उस पास वाले बेड पर लेटे मासूम पर
है, जो अभी अभी पैदा हुआ है. वह, जो सिर्फ अपनी मां का राजा बेटा है, किसी राजा का
बेटा नहीं. पूरी दुनिया मुझे सबसे खुशनसीब मान रही है लेकिन मैं उस पास वाले बेड
के बच्चे को. कम से कम वह खुल कर रो तो सकता है, किलकारी भी भर सकता है. किसी बात
को लेकर मचल तो सकता है, अपने मां बाप की गोद गीली तो कर सकता है. वह मेरी तरह
किसी प्रोटोकॉल में तो नहीं बंधा है.
नानी बताती थी कि राजों रजवाड़ों का दौर बरसों पहले खत्म हो गया. अब कोई राजा
नहीं, कोई प्रजा नहीं. सब बराबर हैं. लेकिन मैं तो पैदा होने से पहले ही इन
चक्करों में पड़ गया.
उफ्फ, कपड़े भी आ गए. गर्मी के दिनों में ये कैसी भारी भरकम पोशाक है. इनकी
क्या जरूरत. क्या मैं भी पास वाले बेड के बच्चे की तरह नंग धड़ंग नहीं घूम सकता.
एक बार तो मुझे इसकी इजाजत दे दो. अभी तो मैं बिलकुल नया हूं. अभी तो मुझे दुनिया
देखनी है. क्या तुम मुझे अपनी नजर से दुनिया देखने का एक मौका नहीं दे सकते.
No comments:
Post a Comment