Thursday 26 December 2013

सब झूठ बोल रहे हैं, वक्त खराब कर रहे हैं



Picture courtesy: humanrightsindia.blogspot


गुलबर्ग के नाम पर लोगों का झूठ सामने आ गया. अदालत ने फैसला कर दिया कि कोई साहेब, साहेब का कोई नौकर इस काम के लिए जिम्मेदार नहीं. पता नहीं क्यों लोग झूठ मूठ किसी को फंसाने की कोशिश कर रहे हैं. सोसाइटी में कोई आग नहीं लगाई गई थी, किसी की मौत नहीं हुई थी. कत्ल तो कोई बिलकुल नहीं किया गया था. अरे, वे तो शांति के पुजारी हैं, भला उन्हें तलवार, खंजर से क्या लेना देना. वो तो राजधर्म के रक्षक हैं.
अच्छा भला विकास का काम हो रहा है, बीच में कोई अड़ंगा लगा देता है. अरे भाई, विकास होने दीजिए. गुलबर्ग, नरोदा पाटिया, गोधरा, क्यों ये सब तमाशा करते हैं. यह सब ढकोसला है. सात साल खराब कर दिया अदालत का. भला बताइए तो, कितना विकास हो जाता इन सालों में.
कोई सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी अपनी निजी खुन्नस निकाल रहा है, तो कोई सामाजिक कार्यकर्ता यूं ही वक्त खराब कर रही हैं. लोगों को झांसे में डाला जा रहा है. कितना शांतिपूर्ण है गांधी का प्रदेश. और आप हैं कि कभी बेस्ट बेकरी कह देते हैं, कभी गुलबर्ग सोसाइटी का इलजाम लगा देते हैं. सब कुछ ठीक तो है. खाइए, पीजिए, विकास देखिए और चैन की बंसी बजाइए.
सच तो यह है कि 2002 में भी कुछ नहीं हुआ था. वह तो खामख्वाह लोग बवाल किए जा रहे हैं. कोई नहीं मरा था, किसी की हत्या नहीं हुई थी. बस, किन्हीं वजहों से कुछ लोगों की जान चली गई थी, उनकी जान वैसे भी कोई मायने नहीं रखती. कानून की देवी की आंखों पर काली पट्टी तो बंधी ही है. अगर मन नहीं भरता हो, तो एक मोटी पट्टी और लगा दीजिए.

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