Wednesday 11 February 2015

कैसी बनेगी दिल्ली वाई फाई फ्री

न्यूयॉर्क की ऊंची इमारतों वाले मैनहैटन इलाके में टहलते हुए एक ब्लॉक से दूसरे ब्लॉक के बीच इंटरनेट कनेक्शन अचानक बदल जाता है। अगर आईफोन में आस्क टू ज्वाइन नेटवर्क सेटिंग है, तो हर ब्लॉक के बाद फोन नए कनेक्शन के लिए पूछ लेता है। यस दबाने पर नया कनेक्शन जुड़ता चला जाता है और कई गलियों तक आप इंटरनेट से कनेक्ट होते चले जाते हैं। वैसे, पूरे न्यूयॉर्क में मुफ्त वाई फाई नहीं है।
Photo: AAP Facebook Timeline

कंप्यूटर पर बैठ कर मेल चेक करने का जमाना बीत गया। अब यह चलते फिरते स्मार्टफोन पर हो जाता है, जिसके लिए मोबाइल का डाटा खर्च करना पड़ता है और इस डाटा के लिए पैसे खर्चने होते हैं। पिछले दशक में स्टारबक्स जैसी कुछ कॉफी हाउसों ने मुफ्त वाई फाई की सुविधा दी थी, लेकिन उसके लिए घंटों एक ही जगह बैठना पड़ता है और इस दौरान कुछेक कप कॉफी तो पी ही ली जाती है। यानी खर्च उसमें भी हो ही जाता है। चलते फिरते मुफ्त वाई फाई मिलने पर समय और पैसे दोनों की बचत हो सकती है।
कितने शहर हैं वाई फाईः गूगल करने पर पता चला है कि अमेरिका के 57 शहरों में मुफ्त वाई फाई है, जिसे तकनीकी तौर पर म्युनिसिपल वायरलेस नेटवर्क कहते हैं। दुनिया के कई दूसरे शहर भी मुफ्त वाई फाई से जुड़े हैं। कई शहरों में सिर्फ सीमित जगहों पर मुफ्त वाई फाई है, जबकि कुछ जगहों पर पैसे खर्च कर वाई फाई इस्तेमाल किया जा सकता है। लेकिन कई ऐसे शहर भी हैं, जहां प्रोजेक्ट फेल हो गया है और फिलहाल उन्हें वाई फाई फ्री बनाने की योजना छोड़ दी गई है। मुफ्त वाई फाई देने वाले ज्यादातर शहर आकार में छोटे और दौलत में संपन्न हैं। यहां विशालकाय नेटवर्क सिस्टम बनाने की जरूरत नहीं होती और आम शहरियों के पास इतने पैसे होते हैं कि टैक्स के तौर पर हर महीने कुछेक डॉलर ज्यादा देना बहुत अखरता नहीं।
दिल्ली में मुश्किल दोनों तरह की है। एक तो यह विशाल शहर है और दूसरा, लोगों के पास अतिरिक्त टैक्स देने की बहुत गुंजाइश नहीं है। आम आदमी पार्टी चाहे कितना भी मुफ्त वाई फाई का एलान करे और चाहे 150 करोड़ रुपये में इस प्रोजेक्ट को पूरा कर लेने का दावा करे, फिर भी उसे राजस्व बढ़ाना होगा और यह काम सरकारी पैसे यानी टैक्स से ही होगा। मुफ्त तो कुछ भी नहीं होता। वैसे 150 करोड़ रुपये में पूरी दिल्ली को वाई फाई करना लगभग असंभव है।

A square in New York
तकनीक की दिक्कतः भले ही मुंबई के बाद दिल्ली में भारत के सबसे ज्यादा इंटरनेट यूजर हैं और यह आंकड़ा एक करोड़ से भी ऊपर है। लेकिन इनमें से कई मोबाइल यूजर हैं, जिनके पास इंटरनेट कनेक्शन नहीं। यानी बुनियादी संरचना कमजोर है। तकनीकी तौर पर एक राउटर कोई 300 मीटर के दायरे तक सिग्नल पकड़ सकता है। यानी राउटरों को ऐसे फिट करना होगा कि एक का सिग्नल छोड़ते ही दूसरे का सिग्नल मिलने लगे। दिल्ली में हजारों, शायद लाखों राउटरों की जरूरत होगी और उन्हें फिर इंटरनेट प्रोवाइडरों के केबल से जोड़ा जाएगा। हो सकता है कि क्नॉट प्लेस और खान मार्केट जैसी जगहों पर यह संरचना बनी हुई हो लेकिन अगर मदनपुर खादर और खजूरी खास या मादीपुर की सोचें, तो वहां केबल से लेकर राउटर तक हर कुछ नए सिरे से बिठाना होगा। दिल्ली के चप्पे चप्पे में केबल और राउटर बिठाने में कितने समय और पैसे की जरूरत है, अंदाजा लगाया जा सकता है।
दूसरी समस्या स्पीड और लोड की है। सार्वजनिक इंटरनेट में किसी तरह की बंदिश नहीं होती। यानी एक साथ कई यूजर लॉगइन कर सकते हैं और लॉगइन रह सकते हैं। इससे जबरदस्त लोड बना रहेगा। अमेरिका की मिसाल बड़ी सटीक है। वहां औसत 8.6 एमबीपीएस डाउनलोड स्पीड है, जबकि वहां भी सार्वजनिक जगहों पर सिर्फ 1 एमबीपीएस। यानी कई बार तो मेल खुलने में ही घंटों लग सकते हैं। कुछ शहरों ने इससे निजात पाने के लिए लोगों को सीमित लॉगइन टाइम और सीमित डाटा दिया है। ऊपर से कोई ऐसा तरीका नहीं है, जिससे ज्यादा जरूरत वालों यानी गरीब तबके के लोगों को प्राथमिकता दी जा सके, जिनके पास इंटरनेट की सुविधा नहीं है।
लेकिन सवाल है कि क्या निजी इंटरनेट और फोन प्रोवाइडरों की लॉबी इस काम को आसानी से होने देंगे। भारत में मोबाइल पर इंटरनेट इस्तेमाल करने वालों की संख्या औसत तौर पर दुनिया में सबसे ज्यादा और यह मोबाइल प्रोवाइडरों के लिए आमदनी का अच्छा खासा स्रोत है। मुफ्त वाई फाई उनकी झोली में छेद कर सकता है। इसका तरीका पब्लिक-प्राइवेट साझीदारी से निकल सकता है। सरकार संरचना बनाए और प्रोवाइर कनेक्शन दें। बदले में उनके विज्ञापन दिए जाएं।
पब्लिक-प्राइवेट गठजोड़ः गूगल ने अमेरिकी शहर सैन फ्रांसिस्को को मुफ्त वाई फाई बनाने की योजना बनाई है लेकिन कोई पक्का डेट नहीं दिया है। जाहिर है कि जब भी यह पूरा होगा, पूरे शहर में गूगल के एडवर्टाइजमेंट नजर आएंगे। पांच साल पहले याहू ने न्यूयॉर्क के टाइम्स स्कैवयर पर एक साल तक मुफ्त वाई फाई दिया था। इस दौरान वहां की विशालकाय स्क्रीनों पर याहू के खूब इश्तिहार चले। फेसबुक भी इस दिशा में कदम उठा रहा है। रोमानिया के ब्रासोव शहर में फेसबुक के साथ लॉगइन करने पर इंटरनेट मुफ्त चल पड़ता है। केजरीवाल की इस महत्वाकांक्षी योजना के लिए निजी भागीदारी की भारी जरूरत होगी।
वैसे इंटरनेट के बगैर आज के जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती और फिनलैंड ने तो ब्रॉडबैंड कनेक्शन को मानवाधिकार तक घोषित कर दिया है। यह बात अलग है कि उनका देश भी अभी तक पूरी तरह मुफ्त वाई फाई नहीं हो पाया है। आम आदमी पार्टी की यह योजना आगे की सोच दर्शाती है और उम्मीद की जानी चाहिए कि उनके टेक्नो सैवी टीम ने इन मुश्किलों के बारे में तो सोचा ही होगा।

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